"रेलवे दुर्घटना"निबंध- "Railway Durghatna" Essay in Hindi ?
15603 May 2022
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Avinash Kumar answered this.
03 May 2022

२५ फरवरी, २००५ । न धूप में तेजी और न जाड़े की ठिठुरन मौसम सुहावना और यात्रा के लिए सुखद था। मुझे अपने एक संबंधी की पुत्री के विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए आगरा से मेरठ जाना था। २६ फरवरी को पाणिग्रहण संस्कार संपन्न होनेवाला था, इसलिए मैंने २५ फरवरी की रात की गाड़ी से मेरठ के लिए प्रस्थान करने का निश्चय किया।
गाड़ी राजामंडी स्टेशन से ३ बजकर १० मिनट पर छूटती थी। मेरे घर के आस- पास रिक्शा, ताँगा आदि का अड्डा नहीं था। ऐसी दशा में भोजनादि से निवृत्त होकर मैंने
रात्रि के १० बजे ही स्टेशन जाना उचित समझा। मेरे साथ एक सूटकेस और होल्डाल था। एक रिक्शा मँगाकर मैंने उस पर अपना सामान रखा और इष्टदेव का स्मरण कर
स्टेशन की राह ली। सड़क सूनी पड़ी थी। उसके एक ओर बिजली की बत्तियाँ टिमटिमा रही थीं। मेरा रिक्शा उछलता-कूदता भागा चला जा रहा था। आधे घंटे में वह स्टेशन पहुँच गया।
मुझे रिक्शे से उतरता देख एक कुली मेरी ओर लपका। उसने सामान अपने सिर पर लादा और मुझे प्रतीक्षालय में पहुँचा दिया। गाड़ी आने में पाँच घंटे की देरी थी,
इसलिए मैं एक खाली बेंच पर अपना होल्डाल खोलकर लेट गया। गहरी नींद तो नहीं आई, पर झपकियाँ अवश्य लेता रहा। ढाई बजे यात्रियों का कोलाहल सुनकर मैं उठ
बैठा। मेरा कुली भी ठीक समय पर आ गया। मैंने मेरठ का टिकट खरीदा और उसके साथ प्लेटफॉर्म पर पहुँचा। थोड़ी देर बाद गाड़ी आ गई। मैं उसमें अपना सामान रखवाकर बैठ गया। करीब दो-तीन मिनट बाद ही गाड़ी रवाना हो गई।
राजामंडी से जब गाड़ी छूटी तब चारों ओर घना अंधकार फैला हुआ था और ठंडी-ठंडी हवा बह रही थी। खिड़कियाँ खुली हुई थीं, नींद के झोंके आ रहे थे। पूरा डिब्बा यात्रियों से भरा हुआ था। अपनी नींद से लड़ता-झगड़ता मैं चुपचाप बैठा रहा। आए और निकल गए। एक्सप्रेस ट्रेन थी। बड़े-बड़े स्टेशनों पर ही रुकती थी। फरीदाबाद पहुँचने के लिए उसे तीन स्टेशन पार करने थे। सवेरा हो गया था और सूर्य का प्रकाश चारों ओर फैल गया था। फरीदाबाद पहुँचकर मैं चाय पीने का विचार कर रहा था। तीसरा स्टेशन पार कर ट्रेन ज्यों ही फरीदाबाद पहुँची त्यों ही एक जोरदार धमाका हुआ। बहुत जोर का धक्का लगा। ट्रेन रुक गई और मैं उछलकर अपने मुँह के बल अपनी सीट से नीचे गिर पड़ा। सीट मेरे हाथ में आ गई। दो दाँत भी टूटकर गिर पड़े। मुँह से रक्त बहने लगा। किसी तरह उठकर देखा तो डिब्बे के यात्रियों का बुरा हाल था। ऊपर से भारी-भारी सामान गिरने के कारण प्राय: सभी यात्री घायल हो गए थे और पीड़ा से कराह रहे थे। यह भयानक दृश्य देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। साहस बटोरकर मैं उठा। खिड़की से झाँककर देखा तो मालूम हुआ, एक्सप्रेस एक मालगाड़ी से भिड़ गई है।
अपना सामान छोड़कर मैं नीचे उतर पड़ा और इंजन की ओर बढ़ा। वहाँ का भीषण देखकर मैं चेतनाशून्य हो गया। इंजन उलट गया था। उसके पासवाले दो डिब्बे छिटककर
पटरी से दूर जा गिरे थे। उनमें बैठे अधिकांश यात्री बुरी तरह घायल हो गए थे। किसी का सिर फूट गया, किसी के हाथ-पैर बेकार हो गए और कुछ तो अपने जीवन की यात्रा समाप्त कर चुके थे। घायल स्त्रियों व बच्चों की चीख-पुकार और उनका विलाप सुनकर हृदय फटा जा रहा था। उस समय फरीदाबाद का स्टेशन श्मशान भूमि बन गया था। दुर्घटना का दृश्य इतना बीभत्स और हृदय-विदारक था कि उसे जड़ लेखनी अंकित नहीं कर सकती।
रेल-दुर्घटना फरीदाबाद स्टेशन पर हुई थी, इसलिए डॉक्टरों और प्राथमिक उपचार करनेवालों की सहायता तुरंत प्राप्त हो गई। फोन से दुर्घटना का समाचार दिल्ली भेज दिया गया। वहाँ से शीघ्र ही सहायता आ पहुँची। गंभीर रूप से घायल यात्री दिल्ली भेज दिए गए और साधारण घायल यात्री फरीदाबाद के अस्पताल में भरती कर लिये गए। मलबा हटाने का कार्य भी आरंभ हो गया। टूटे डिब्बों के नीचे दबी हुई कई लाशें मिलीं। यात्रियों के सामान की देखभाल के लिए सिपाही नियुक्त कर दिए गए। करीब चार बजे तक मृतकों की खोज होती रही। इसी बीच दिल्ली से कई संवाददाता घटना स्थल पर आ पहुँचे। दर्शकों की भीड़ जुट गई। रेलवे कर्मचारी घायलों और मृतकों की पते सहित सूची बनाने लगे। संवाददाताओं ने घूम-घूमकर यात्रियों के बयान दर्ज कराए। मैंने भी अपना बयान दिया। फरीदाबाद स्टेशन के अधिकारियों के भी बयान लिये गए। ज्ञात हुआ कि स्टेशन मास्टर की असावधानी से यह भीषण दुर्घटना हुई थी। उन्होंने एक्सप्रेस को उसी पटरी का सिगनल दे दिया था, जिस पर मालगाड़ी खड़ी थी। उनकी असावधानी से १५० यात्री यमलोक चले गए और ३५० यात्री गंभीर रूप से घायल हुए आशा नहीं यात्रियों के बचने की कोई प्राथमिक उपचार के बाद मैं कुछ स्वस्थ हो गया और २७ फरवरी को वहाँ से अपने घर लौट आया। दुर्घटना का भयानक दृश्य मेरे मन-मस्तिष्क पर इतना छा गया था कि मुझे मेरठ जाने का साहस ही नहीं हुआ। आज भी जब उस दुर्घटना की याद आती है तो उसका भयानक दृश्य आँखों के सामने साकार हो उठता है, तब मैं भय से सिहर उठता हूँ।
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