बहुमूत्र (POLYURIA, DIABETES INSIPIDUS) के कारण, लक्षण एवं आयुर्वेदिक उपचार—Ayurvedic Remedies?

12 Sep 2022   |    213

~ Aman Sah

Aman Sah answered this.

12 Sep 2022

रोग परिचय, लक्षण एवं कारण:–
क्षय रोग की पैत्रिक प्रवृत्ति होना, हिस्टीरिया, चिन्ता, सिर पर चोट लग जाना, यकृत अथवा अमाशय के विकार, सर्दी लग जाना, शराब पीना, आतशक, कब्ज या पौष्टिक भोजन न मिल पाने आदि कारणों से यह रोग हो जाता है।
इस रोग में रोगी को 24 घन्टे में 8 से 10 किलो के लगभग मूत्र आता है। बच्चों और युवाओं को यह रोग अधिक होता है। वंश परम्परागत विकृति से भी यह होता है। कब्ज, मन्दाग्नि, प्यास की अधिकता, मूत्र अत्यधिक मात्रा में आना, मूत्र का रंग हल्का पीला होना, अधिक मूत्र आने के कारण अनिद्रा तथा दिन– प्रतिदिन क्षीण होते चले जाना, प्राय: कमर में दर्द रहना आदि लक्षण होते है‌। कई बार यह  कमर का दर्द बढ़ कर रोगी की जंघाओं और पिन्डलियों तक पहुँच जाता है।
रात दिन में लगभग 8–10 किलो मामूली पीले रंग मित्र का होना, मूत्र का आपेक्षिक गुरुत्व 1000 से 1005 तक तथा जीभ लाल, चमकदार रहे, मन्दाग्नि, सिरदर्द, सुस्ती आदि होने से इस रोग को आसानी से पहचाना जा सकता है।
बहुमूत्र (POLYURIA, DIABETES INSIPIDUS) के कारण, लक्षण एवं आयुर्वेदिक उपचार—Ayurvedic Remedies?
विशेष:–
क्षय रोग के रोगी को यदि यह रोग हो जाये तो वह अवश्य मर जाता है। रोग बढ़ जाने पर शरीर की मांसपेशियां घुलने लग जाती है और रोगी दिन प्रतिदिन दुर्बल होता चला जाता है।
बहुमूत्रता नाशक प्रमुख योग
बहुमूत्रता के बच्चों रोगी को निम्न योग प्रयोग करवाकर निरोगी करें:—
  1. बंग भस्म 15 से 30 मि.ग्र. मधु से दिन में 3-4 बार चटायें।
  2. शिलाजीत वटी ½ से 1 गोली तक सुबह-शाम ठन्डे जल या दूध से दें।
  3. मधुमेहान्तक रस ¼ से ½ गोली, गिलोय स्वरस, केले की पक्की फली या गूलर के काढ़े से सुबह-शाम दें। यह योग मधुमेह के अतिरिक्त बहुमूत्र ने भी उपयोगी है।
  4. महाराज बंग भस्म–15 से 30 मि. ग्रा. मलाई के साथ सुबह-शाम चटायें।
नोट:—
यह भस्म बहुमूत्र के अतिरिक्त प्रमेह, नपुंसकता, 
विर्यस्त्राव आदि रोगों में भी गुणकारी है तथा वीर्य स्तम्भक एवं शक्तिप्रद भी है।
      5. बहुमूत्रान्तक रस की चौथाई से 1 गोली तक                   सुबह शाम दोनों समय गूलर के क्वाथ या ठन्डे                जल से दें।
अधिक प्यास लगने पर शालपर्णी, मुलहठी, दाब की जड़, मुनक्का, श्वेत चन्दन, हरड़ का बक्कल, महुआ के फूल 6 ग्राम लेकर कुचलकर रात को 250 मि. ली. जल में भिगों दें तथा प्रातः काल मसलकर छानकर रखलें। फिर दिन भर प्यास लगने पर इस द्रव्य को थोड़ा-थोड़ा पिलायें। इसके बाद सुबह भिगोकर रात में उपयोग में लायें।
बहुमूत्र नाशिक घरेलू प्रयोग
  • मिश्री 40 ग्राम, मुलहठी 30 ग्राम, काली मिर्च 20 ग्राम लें और कूटपीसकर चूर्ण बनायें। फिर 4 ग्राम गाय के घी में मिला कर सुबह-शाम चटायें। 1 सप्ताह में ही लाभ हो जायेगा।
  • रूमी मस्तंगी, दालचीनी, शक्कर तीनों को समान मात्रा में लें। यह मिश्रण 3 ग्राम प्रातः सायं गर्म जल से लें। 1 सप्ताह में आराम हो जायेगा।
  • काले तिल, पुराना गुड़, दोनों को समान भाग लेकर 1-1 ग्राम की गोलियाँ बना लें। सुबह, दोपहर, शाम खायें।
  • खस–खस के दाने 20 ग्राम तथा गुड़ 20 ग्राम लें। इसे 1–1 ग्राम प्रातः सायं जल से दें।
  • तिल काले 40 ग्राम, अजवायन 20 ग्राम मिलाकर बारीक पीसलें। फिर 60 ग्राम गुड़ मिला लें। इस योग को 6–6 ग्राम खायें। बहुमूत्र नाशक बहुमूल्य योग है।
विशेष:–
छोटे बच्चे जो रात्रि में बिस्तर का मूत्र कर देते हैं, उस में भी परम उपयोगी है।
  • रीठे की गुठली का चूर्ण आधा ग्राम सुबह-शाम प्रातः सायं ताजे पानी के साथ देने से बहुमूत्र रोगे 1 सप्ताह ठीक हो जाता है।
  • तिल काले 5 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम तथा नौसादर 4 ग्रेन लें। यह एक खुराक है। तीनों को कूट–पीसकर प्रातः सायं 2–3 महीने सेवन करायें।

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