Panchayat horror story

रात का गहरा सन्नाटा था। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। एक आदमी तेज कदमों के साथ रास्ते पर चलता जा रहा था। तभी अचानक बारिश होने लगी। उसे सामने पंचायत घर दिखा, पर वो वहाँ रुकना नहीं चाहता था। इसलिए वह चलता रहा। लेकिन अचानक बहुत तेज बिजली कड़की। डर के मारे वह आदमी भागा और पंचायत घर के छज्जे के नीचे खड़ा हो गया।


"हे भगवान! मैं कहाँ फँस गया?" उसने खुद से कहा। पंचायत घर में ताला लगा हुआ था, लेकिन अंदर से किसी के बुदबुदाने की आवाज आ रही थी। अंधेरे में कुछ भी देखना मुश्किल था, तो उसने मोबाइल निकाला और फ्लैश जलाई। जैसे ही रोशनी हुई, उसके सामने एक खतरनाक चुड़ैल प्रकट हुई।


"मुझे कुछ मत करना! मैं तो बस..." वह व्यक्ति घबराते हुए बोल पड़ा।

विवेक नाम का एक नया सचिव, मालगंज नामक गाँव के पंचायत घर की ओर आ रहा था। उसने सोचा, "हे भगवान! कैसी किस्मत है मेरी! मुझे गाँव बिल्कुल पसंद नहीं है और यहाँ नौकरी करनी है। लेकिन क्या करूँ? मजबूरी का नाम नौकरी है।"


रास्ते में उसे एक पागल सा आदमी मिला, जो उसे चेतावनी देते हुए कहने लगा, "तू नया सचिव है ना? मर जाएगा! वह तुझे नहीं छोड़ेगी।"


विवेक ने उसे नजरअंदाज किया और पंचायत घर पहुंचा। वहाँ एक आदमी, अभिषेक, उसका इंतजार कर रहा था। "आइए सर, आपका इंतजार कर रहा था।"


पंचायत घर में घुसते ही विवेक ने बदबू महसूस की। "यह बदबू कैसी है?"


"मुझे भी नहीं पता, सर। शायद कोई जानवर मरा होगा।" अभिषेक ने कहा।


लेकिन विवेक को शक हो रहा था। उसने ध्यान नहीं दिया और अंदर जाकर बैठ गया। तभी उसके सामने रखी कुर्सी अपने आप हिलने लगी। वह कुर्सी के पास गया, तो वह अचानक रुक गई। विवेक को कुछ समझ नहीं आया और वह कुर्सी पर बैठ गया। अगले ही पल उसका शरीर पैरालाइज हो गया और उसे लगा कि पंचायत घर में हर जगह खून भरा है। वह घबरा गया, लेकिन तभी उसका फोन बजा और वह सामान्य हो गया। सब कुछ पहले जैसा था।

रात में, प्रधान का फोन आया, "सचिव जी, आज आपका खाना मेरे घर है। आ जाइए।"


विवेक प्रधान के घर पहुंचा। प्रधान ने उससे कहा, "यह पंचायत घर शापित है। यहाँ कोई सचिव टिक नहीं पाता।"


विवेक डरते हुए प्रधान के घर से निकला। रास्ते में अचानक उसे बिल्ली के रोने की आवाज आई। उसने चारों ओर देखा, पर कोई बिल्ली नहीं थी। तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। वह झिझक गया।


"अरे सर, आप डर क्यों रहे हैं?" वह अभिषेक था। 


विवेक ने उसे नजरअंदाज किया, लेकिन जब अभिषेक ने उसे उसका मोबाइल लौटाया, तो उसे शक होने लगा कि कुछ गड़बड़ है।


विवेक पंचायत घर पहुंचा और अंदर घुसते ही उसे फिर से बदबू महसूस हुई। उसने बदबू के स्रोत को ढूंढने की कोशिश की। एक बंद कमरा नजर आया, लेकिन उसमें ताला लगा था। प्रधान ने दरवाजा खोलने से मना कर दिया। विवेक ने फैसला किया कि अब वह यहाँ एक तांत्रिक को बुलाएगा।

शाम को एक तांत्रिक पंचायत घर आया। उसने चुड़ैल को वश में करने की कोशिश की। आखिरकार, चुड़ैल ने बोलना शुरू किया, "यह सब प्रधान की वजह से हो रहा है। उसने 10 साल पहले एक सचिव की हत्या करवाई थी। तब से मैं यहाँ हूँ।"


तभी अभिषेक ने खुलासा किया, "यह टोना मैंने कराया था! प्रधान ने मेरे भाई को मारा था। अब कोई भी इस कुर्सी पर नहीं बैठेगा।"


विवेक घबराकर अभिषेक से मिन्नतें करने लगा। पर अभिषेक ने चुड़ैल को इशारा किया, और अगले ही पल विवेक की गर्दन धड़ से अलग हो गई। पंचायत घर का बंद कमरा खुला, और उसमें लाशों का ढेर था। अब एक और लाश, विवेक की, उसमें जुड़

 गई थी। फिर दरवाजा बंद हो गया।

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