रोग और समाधान: जानिए कौन से रोग में कैसे करें गाय के घी का उपयोग

 रोगानुसार गाय के घी के उपयोग

१. गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है ।

२. गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है 

३. गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।

४. 20-25 ग्राम गाय का घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है । 

५. गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है ।

६. नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है ।

७. गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है 

८. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है ।

९. गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है ।

१०. हाथ-पॉँव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है ।

११. हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी । 

१२. गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है ।

गाय का घी और स्वास्थ्य: कौन से रोग में कितना फायदेमंद

१३. गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है । 

१४. गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है ।

१५. अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें ।

१६. हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा । 

१७. गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है ।

१८. जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाई खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, इससे ह्रदय मज़बूत होता है ।

१९. देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है ।

२०. गाय का घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर या बूरा या देसी खाण्ड, तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें । प्रतिदिन प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है ।

रोग विशेष में गाय के घी के लाभ: एक सम्पूर्ण गाइड

२१. फफोलों पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है ।

२२. गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायता मिलती है ।

२३. सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम गाय का घी पिलायें, उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें, जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष भी कम हो जायेगा ।

२४. दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है ।

२५. सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, इससे सिरदर्द दर्द ठीक हो जायेगा ।

२६. यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है । वजन भी नही बढ़ता, बल्कि यह वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है तथा मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है ।

२७. एक चम्मच गाय के शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।

२८. गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें । इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं । यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है ।

२९. गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए । यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है । 

३०. अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को सन्तुलित करता है।

स्वास्थ्य का खजाना: रोगानुसार गाय के घी का सही उपयोग

बताए गए रोगों पर गौ घृत जब  ही कारगर सिद्ध होगा जब वह 100 प्रतिशत शुद्ध भारतीय गो नस्ल के दूध से निर्मित हो और उसे बनाने के लिए सिर्फ वैदिक पद्धति का ही प्रयोग किया गया हो वैदिक पद्धति का तात्पर्य है की दूध सिर्फ गौ माता के दो थन से निकला हो और दो थन का दूध बछड़े को मिला हो तो ही वह दूध हिंसक ना होकर अहिंसक रहता है।

दूध को मिट्टी के पात्रों में ही गर्म करना है गोबर के कंडे की ही अग्नि लगानी है जिससे वह धीमी आंच पर ही गर्म हो और अन्य कई प्रकार की दूषित गैसों से दूध प्रभावित ना हो गर्म होने के बाद उसे मिट्टी के पात्रों में ही दही के लिए रखना है।

कम से कम 48 घंटे के बाद ही उसे बिलोना करने के लिए  उपयोग करना है बिलोना सिर्फ हाथ से ही करना है उसके लिए किसी भी मशीन का उपयोग नहीं करना है मशीन के उपयोग से विद्युत रेडिएशन से दही के गुण नष्ट हो जाते हैं जिससे व उपयोगी सिद्ध नहीं होता।

मक्खन को कम से कम 5 बार पानी में धोना है जिससे उसमें छाछ का भाग एक दम निकल जाए।

मक्खन को चांदी के पात्र मिट्टी के पात्र में ही गर्म करना है और उसे धीमी धीमी आंच पर गाय के गोबर से बने कंडो  पर ही गर्म करना है ।

मक्खन पूर्ण रूप से पिघलने के बाद घी में परिवर्तित होने के बाद उसे 6 घंटे तक पड़ा रहने देवे और उसके बाद उसे कांच की बोतल में कपड़े से चांन कर भरें वही घृत मनुष्य के शरीर में उत्पन्न हुए रोगों पर कारगर सिद्ध होता है। 

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