Kash jindagi सच-मुच kitab hoti hai
310 Nov 2024
छू रहे थे सब बुलंदिया आसमान की में मैं सितारों के बीच चांद की तरह छुपता रह,,
अकड़ होती तो कब का टूट गया होता। मैं था नाजुक डाली
जो सबके आगे झुकता रहा
बदले हैं लोगों ने रंग अपने-अपने ढंग से
रंग मेरा भी नखरा पर मैं मेहंदी की तरह पिसता रहा,,,,
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