Google पर आर्टिकल कैसे लिखें?
613 Nov 2024
Google पर आर्टिकल कैसे लिखें?
.कर्म ही जीवन है
कर्म का अर्थ है
कार्य करते रहना।
जैसा जन्म हुआ,
वैसा ही कर्म मिलते हैं।
कर्म की प्राकाष्ठा ही धर्म है।
और धर्म अर्थ है कर्तव्य।
जैसा जन्म होगा,
वैसा ही कर्म होंगे।
कर्म को ही, निभाना धर्म है।
जिसने कर्म से जैसा धर्म निभाया, वैसा ही जन्म होता है।
जैसा हम कर्म करते हैं
वैसे ही योनियों में
जन्म लेते हैं।
यही सिद्धांत भी जहां जन्म हुआ वही कर्म कीजिए।
क्योंकि "कर्म ही धर्म" है।
_____ अध्यात्म कहता है की धर्म का अर्थ कर्तव्य है।
जैसा कर्म करोगे वैसा ही धर्म बनता जायेगा।
_____ कर्म ही कार्यों का नाम है कर्म ही सेवा का नाम है। कर्म ही प्रभुका वरदान है। जो प्रभु ने हम सब जीवों को सौंपा है।
उस कर्म रूपी कार्यों को करते हुए हम अपना धर्म निभाते रहें। यही संसार का नियम है।
क्योंकि....ईश्वर ने कर्म के लिए हर जीव को ""चौरासी करोड़"" योनियों से गुजरना पड़ेगा हैं। बस अपने कर्म का पालन करके हर एक प्राणी को इनसे गुजरना पढ़ेगा।
अंतर इतना है जिसने अच्छे कर्म करते हुए अपना अच्छा धर्म निभाया है वही अच्छी अच्छी योनियों से गुजरता हुआ अच्छे कुल में जन्म लेता है।
(कहने का भावार्थ है उसका प्रभु प्रमोशन कर देते हैं )
..... ऐसे ही अच्छे कर्मों का ही प्रणाम की हमें मानव योनि मिली है कुल मिला है परिवार भी...
_____वो बात अलग है जो हमें मानव योनि में आकर भले ही कर्म भूला दिए हों वो बात अलग है।
पर ये जरूर है की जो कर्म न करके अपने धर्म को भूल गया। उसे पुनः फिर चौरासी के चक्कर कटने पढ़ेंगे।
______प्रभु के दिए कर्म से कार्यों को को छोड़कर स्वयं अहंकार में आकर
मानव अपने बहम से अहम में आकर खुद खुदा बन जाता है। बस
यही पर धर्म बदल जाता है। कर्म बदल जाता है।
और मानव से अमानुष्य रूप रंग बनाकर...वो अहंकार में आकर वो मनुष्य जैसे कर्म नहीं करता...बल्कि तब वो मानव अधर्म की राह पकड़ कर..अंगुणो की महिमा गाते हुए संसार को अपनी सत्ता समझ बैठता हैं।
____वो अहंकार से भर
भरकर कर्म निष्ठ मानव को सताने लगता है। क्योंकि विचारों की भिन्नता साफ दिखने लगती हैं।
क्योंकि जो प्रभु ने हमें मानव जन्म दिया।उसमें
ईश्वर ने ""सेवा दी है प्रभु का ""सिमरन व ""सत्संग वाला जीवन जीने के लिए दिया है।
कर्म करने वाले के अंदर ""सेवा"" भाव आता है तो घर परिवार समाज में वह सामंस्य बनाकर चलता जाता है।
और मुझसे कोई गलती न हो जाए प्रभु "सिमरन" करते हुए वो अपना धर्म निभा सकें ऐसी शक्ति देना प्रभु प्रार्थना कर गलती न हो जाय क्षमा याचना कर हर पल याद करता रहता रहता है। जिससे उसके मन में कोई बुराई व कुरीति उत्पन न हो।
सेवा सुमिरण से तब वो सतगुरु से प्रभु स्वरूप दर्शन के लिए अरदास प्रार्थना करते हुए सत्य को धारण करने के लिए अपने जैसे सचे संतो को ढूंढ कर ""सत्संग"" में पहुंच कर इस प्रभु सत्ता की चर्चा को जान जाता है तभी वो हर जीवों में प्रभु रूप समझकर ""सेवा भाव"" रखने लगता है।
वो ही प्रभु का ""सिमरन"" करते हुए... तब वो मानव सत्य से जुड़ जाता है।
जहां भी जाता सच ही बोलता है, सत्य की ही बात करता, तब कुछ लोग कहते हैं की ये ""सत्संग"" है।
यानी वो हर वक्त सत्य से जुड़ जाता है। चाहे दो लोग मिले या हजारों, वो सत्य की बोली बोलता हुआ यही कहेगा।
_____ जिसने हमें जन्म दिया,हमारे भर पोषण के लिए संसार की रचना की, हमारे लिए तीन लोक बनाए... नो खंडों का सर्जन किया, और कर्म धर्म में जोड़कर जो योनि हमे दी है जीव जंतु पशु पक्षी, किट पतंगे, चींटी से लेकर विशाल हाथी तक जो उन्होंने बनाया रचाकर जगत को दिया। सबके लिए वैसा ही इंतजाम भी किया है। किसी को बुद्धि दी... और मानव को विवेक देकर समझदार बनाया है। उसे उसका कर्म भी समझाया है...की यही तुम्हारा धर्म भी है।
___जीवों में सबसे उत्तम सर्बोत्तम मानव योनि है। उसे बोलने सोचने समझने के साथ सभी योनियों पर मानव की छात्र छाया में रहने का संरक्षक बनाया है ।
अंतर इतना है की मानव में बुद्धि के साथ साथ विवेक दिया है,जिससे वो अपने विवेक के बल की शालीनता से मानव इनकी देख रेख कर सकें। ये समझ सेवा, सुमरन, सत्संगी जीवन तभी प्राप्त कर यही मानव मोक्ष को भी प्राप्त होता है।
___सच में ऐसा मानव जीवन ८४ योनियों से गुजरने के बाद अपने अच्छे कर्म का परिणाम है। इसलिए इस मानव जीवन को अच्छे कर्मों में ढलकर, मानव धर्म पर चलकर, इस मानव योनि में प्रभु के रंग रूप,ढंग सब दिखने लगते हैं....तो किसी बिल्ले बिरले को सतगुरु अपना स्वरूप दिखाता है। वो मानव भी प्रभु गुणों को धारण करके उसी पर अपना जीवन चलाते हुए अपने अंत समय तक हर मानव में प्रभु सेवा को पा लेता है। वही मानव आत्मा के अधीन होकर परमात्मा को पा लेता है।
अंत में ये परमेश्वर में लीन होकर जहां से ये आत्मा आई या उतपन्न हुआ थी, वो उसी परमात्मा में समा जाती हैं।
______ये सत्य है, साक्षात है। की मीरा को शरीर सहित कृष्ण मूर्ति में समाते हुए भक्तो ने देखा।
_____ये भी सत्य है की कबीर के शव पर लोगो को लड़ते हुए देखा गया, जब चादर हटाई तो फूलों का ढेर मिला,शरीर सहित लोप हो गए थे...।
....४०० वर्ष पहले का ये साक्षात प्रमाण है।
____पर ये सत्य भी सच प्रमाणित हैं की जिसने प्रभु को छोटा समझकर, अहंकार में अपने को बड़ा मानकर, अपनी झूठी सत्ता के अहम बहम से, लोगो का उत्पीड़न किया... उसका अंत बुरा ही हुआ।
____ये सच भी प्रमाणित हैं कि प्रहलाद जैसा प्रभु ""सेवा ""सिमरन करने वाला सच के संग चलते हुए, ""सत्संग करते हुए स्वयं अपने पिता हिरणायक को भी जो स्वयं भगवान बन गया था। उसके उत्पीड़न अत्याचार को सहते हुए भी सच को नही छोड़ा था..तो पिता ने उसे भी बहुत दंड दिए। पर प्रभु लीला अपरम्पार है उसे बचाते रहे। यह छोटे बालक की सहजता सरलता की भी परीक्षा हुई.. सच पर डीगा रहा,
पास हो गया। तब स्वम
नर्सिंग रूप अवतार धरी हिरण्यकश्यप को मार गिराया,.....सत्य की विजय हुई।
_____फिर ऐसा ही रावण जो विद्वान था, अहंकार आते ही वो भी स्वयं भगवान बन गया। श्री रामचंद्र जी ने उसका बध किया।
___इसी तरह ही अपनी मृत्यु के भय से कंस ने देवकी के साथ बच्चो को अपने हाथ से मार दिया फिर भी आठवां पुत्र श्री कृष्ण के हाथो मारा गया।
_____ये भी सच है जहां जो प्रभु ने बीच बीच में अपने स्वरूप प्रकट कर संसार को दिखाया बताया कि तुम मेरी माया हो। माया व सच में अंतर बताया गया।
_______ऐसे सच के लिए भी जब पापियों को यह
सच ज्ञानियों ने साधु संतो ऋषियों के द्वारा प्राप्त ज्ञान से अपना जीवन परिवर्तन कर.... वाल्मीकि जैसे लुटेरे संत बन गए। और अंगुलीमार जैसा लुटेरा साधु बन गया। इसे भरमार आज भी उदाहरण पड़े हुए हैं।
_________आज के भी इस वर्तमान में भी कहूं या कलयुग में भी....ईश्वर पर लोगो की आस्था नहीं रह गई। बल्कि ईश्वर की भव्यता से जुड़कर बिना कर्म किए ही मांगने की प्रवृति जैसी प्रतीत हो गई है। बिना कुछ कर्म किए ही प्रभु से केवल अपने और अपने परिवार के लिए स्वार्थ में ""वरदान"" मांगने के लिए मंदिर में धन को चढ़कर ...एक बाजार का निर्माण करके बैठ गए हैं। ऐसी दुकान अपने घर घर में भी सजा दी कर माया के भ्रम में पड़कर ये वो लोग ईश्वर के बनाए व्यक्ति को भूलते जा रहे हैं और अरबों खरबों के ईट पत्थर के मकानों पर रंग रूप की माया को थोप कर ढोंग की माया का नशा चढ़ता जा रहा है।
_____समाज में ऐसे लोगो ने ईश्वर के कर्म रूपी कर्तव्य को भुलाकर ढोंग रूप में धर्म के नाम पर अराजकता फैलाकर समाज में झूठ, मक्कारी,
धोखादारी कर भ्रष्टाचारी को हर पल अपनी सेवा
समझकर, समाज में अंध विश्वास पर चलकर रूढ़वाड़ी विचारो को अपना ज्ञान ध्यान मानते हुए अपने अपने घरों में भी मंदिर बना कर धन कमाने का साधन बना बैठे हैं....
____ऐसे ही भगवान को भी आज राजनीति का पैमाना मानकर बड़ा भव्य बाजार तैयार कर आमदनी का हिस्सा मान बैठे ये लोगो माया रूपी जाल में फंसाते हुए प्रभु रूपी दाना डालकर, भ्रमित लोगो को फंसा
कर छोटे.. बड़े चंदे लेकर भगवान को भी मूर्ख ही समझकर अपनी राजनीति की रोटी सेकते हुए बाजार में दुकान खोल बैठे हैं....
_____अब ईश्वर कैसे अपनी लीला रचता है सच्चे लोग को कैसे उभरता है ये अब हमे इंतजार करना होगा।
जरूर प्रभु की ये लीला है, रामलीला का न्याय देखने के लिए पलकें बिछाए बैठे वे लोग जो माया का विरोध करते हुए सेवा सुमिरन सत्संग में लगे है।
____ हे! प्रभु सारे संसार में अहम बहम और अहंकार का साम्राज्य फैलता जा रहा है...तेरी बसाई दुनिया उजड़ रही है...अच्छे मानव पीड़ित हो रहे हैं , सज्जन मानव चुप हो गए हैं....
तेरे न्याय के इंतजार में हम सब वो लोग जो तुम पर अपना विश्वास रखते हैं। आपसे प्रभु ! प्रार्थना करते हे की ""विश्व शांति
विश्व बंधुत्व""शीघ्र दुनिया में लाओ! दुष्ट आत्माओं से बचाओ! अहम बहम अहंकार का नाश करो...
सुख शांति में वास करो..
ऐसी मेरी अरदास🤲 हे! प्रभु! सारे संसार में फिर से अपना ✋ आशीष रखते हुए..."एकत्व"" ""मिलवर्तन"" ""शांति"" का संदेश देने वाले भक्तो की सच्ची दुनिया बसा कर अपनी शक्ति से भक्ति का माहोल बनाकर सारा संसार तेरे गुणगान में समा जाए।
"""धन निरंकार जी"""🙏
अध्यात्म के पल
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