बस उतना अमीर होना चाहता हूँ की ईश्वर मुझे जरिया बना कर जरूरतमंदों की मदद करें।

बस उतना अमीर होना चाहता हूँ कि ईश्वर मुझे जरिया बनाकर जरूरतमंदों की मदद करें


राहुल एक साधारण परिवार से था। उसके पास बड़े ख्वाब थे, लेकिन पैसों की तंगी हमेशा एक बाधा बनकर खड़ी रहती थी। उसने जिंदगी में गरीबी का दर्द बहुत करीब से देखा था, और यही वजह थी कि राहुल हमेशा सोचता था, "एक दिन मैं इतना अमीर बनूँगा कि भगवान मुझे जरिया बनाकर दूसरों की मदद कर सकें।


राहुल ने कड़ी मेहनत की, दिन-रात मेहनत कर एक छोटी सी नौकरी पाई और फिर धीरे-धीरे उसे तरक्की मिलने लगी। उसने कुछ पैसे जमा किए और अपने छोटे से व्यवसाय की शुरुआत की। भगवान ने उसकी मेहनत को देखा, और उसे सफलता का स्वाद चखाया। पर राहुल का दिल अब भी अपनी पुरानी सोच पर कायम था - वह चाहता था कि उसका पैसा सिर्फ उसकी अपनी जिंदगी में ही खुशियाँ न लाए बल्कि दूसरों के आंसू भी पोंछे।


एक दिन उसने अपनी कमाई का एक हिस्सा लेकर एक अनाथालय में दान दिया। बच्चों के चेहरे पर खुशी देखकर राहुल का दिल भर आया। उसे अहसास हुआ कि उसकी मेहनत सचमुच किसी की जिंदगी बदल रही है। उसने फिर से ठान लिया कि वह अपने जीवन का हर एक दिन इसी उद्देश्य के साथ जिएगा - बस उतना ही अमीर होना है कि ईश्वर उसके माध्यम से जरूरतमंदों की मदद कर सकें।


राहुल ने गरीब बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की, सर्दियों में कम्बल बाँटने शुरू किए, और कई बेसहारा लोगों के लिए खाने का प्रबंध किया। धीरे-धीरे, उसके छोटे-छोटे प्रयास कई लोगों की जिंदगी का सहारा बन गए। उसकी इस निस्वार्थ सेवा ने उसे अपने शहर में एक मिसाल बना दिया। लोग उसके इस नेक काम को सराहने लगे, लेकिन राहुल के मन में अब भी वही एक इच्छा थी – "बस इतना कमाऊँ कि भगवान मुझे जरिया बनाकर हर जरूरतमंद की मदद कर सकें।"


राहुल का सफर हमें ये सिखाता है कि असली अमीरी दिल की होती है। धन और साधनों से बड़ा वो उद्देश्य होता है जिसके लिए हम मेहनत करते हैं। और जब ईश्वर हमें किसी की मदद का जरिया बना देते हैं, तो शायद उससे बड़ी कोई खुशी नहीं होती।

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