गोगाजी की रोमांचक सच्ची कहानी।
713 Nov 2024
गोगा जी अर्जन और सर्जन के कटे सर लेकर ददरेवा के महलों में आ पहुंचे आखिर वही हुआ जिसका डर माता बाछल को हमेशा से लगा रहता था गोगा जी के हाथों में अपने ही भाइयों के सर देख माता बाछल के क्रोध के सीमा ना रही भोली और साफ मन की माता ने क्रोध में गोगा जी से कहा कि तुमने अपने ही भाइयों को मार डाला इसी वक्त यहां से चला जा और मुझे कभी जीवन में अपनी शक्ल मत दिखाना माता की आज्ञा सुनकर गोगा जी दुखी मन और भरे नेत्रों से ददरेवा से निकल गए पीछा करते हुए माता सीरियल गोगा जी के पास आ पहुंची और गोगा जी के साथ चलने की जिदकरने लगी तब गोगा जी ने कहा कि अभी मेरा खुद का कोई ठिकाना नहीं तो मैं आपको अपने साथ कहां रखूंगा इस पर माता सीरियल ने गोगा जी से वचन लिया कि आप मुझसे मिलने आते रहेंगे रानी के बहुत आग्रह करने पर गोगा जी मान गए और रानी से कहा ऐसा ही होगा किंतु इसके बारे में आप किसी के समक्ष चर्चा ना करें जिसके बाद गोगा जी वहां से गोरख टीले की तरफ चल दिए और नैनों में नीर लिए रानी सीरियल उन्हें देखते हुए अधीर खड़ी रोती रही गोरख टीले पर पहुंचते ही गोगा जी ने गुरु चरणों में प्रणाम किया जब गुरु गोरखनाथ ने गोगा जी से आने काकारण पूछा तो प्रत्युत्तर देते हुए गोगा जी ने कहा अंतर्यामी गुरु आप तो सर्वज्ञान बता सकता हूं कि मैं अब पूर्ण रूप से आपकी शरण में आ चुका हूं गुरु गोरखनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा कि जैसी तुम्हारी इच्छा गोगा जी दिन में तपस्या में लीन रहते और रानी को दिए वचन अनुसार रात्रि में रानी सीरियल से मिलने चले जाया करते और सुबह ब्रह्म मुहूर्त के समय उठकर गोरख टीले पर लौट आते गोगा जी को यह भय हमेशा लगा रहता कि कहीं माता ने उनको देख लिया तो उनकी आज्ञा का उल्लंघन हो जाएगा लेकिन रानी सीरियल को दिया वचन भी निभाना जरूरी था इस दुविधा में फंसे गोगा जी नेजब इसके बारे में गुरु गोरखनाथ को बताया तो गुरु ने कहा कि बेटा शास्त्रों के अनुसार अपना दिया वचन निभाना ही एक क्षत्रिय का धर्म है अतः अपने वचन का पालन करो इसी प्रकार कुछ समय बीत गया और फिर तीजो का त्यौहार आया 16 सिंगार कर रानी सीरियल तीज झूलने की आज्ञा लेने अपनी सास के पास पहुंची रानी के श्रृंगार देख माता बाछल क्रोध में बोली जब तुम्हारा पति घर बार छोड़कर जा चुका है तो यह हार श्रृंगार किसे रिझाने के लिए किए जा रहे हैं अपने ऊपर लगा लांछन रानी सीरियल से सा आ गया और सीरियल ने माता को प्रत्युत्तर देते हुएकहा चले तो आपके लिए गए हैं मुझसे तो नित्य प्रति रात को मिलने आते हैं माता बाछल ने रानी को झूठी कहते हुए कहा कि जब तक मैं खुद अपनी आंखों से नहीं देख लेती तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं करूंगी इतना कहकर माता बाछल रानी सीरियल को नौलखे बाग में झूला झुला करर महलों में लौट आई और द्वारपाल से कहा कि रानी सीरियल के कक्ष के आगे नजर रखो यदि गोगा आए तो मुझे इसकी सूचना तुरंत मिलनी चाहिए हमेशा की भांती रात्रि होते ही जब गोगा जी महाराज ददरेवा के महलों में पधारे तो द्वारपाल ने आज्ञा अनुसार माता बाछल को सूचित कर दियासूचना मिलते ही माता बाछल गोगा जी के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगी जैसे ही गोगा जी महलों से बाहर आकर नीले पर सवार हुए तो माता बाछल ने तुरंत सामने आकर घोड़े की लगाम पकड़ ली गोगा जी ने माता के समक्ष यह सोचकर मुंह फेर लिया कि कहीं माता द्वारा दी गई कभी मुंह ना दिखाने की आज्ञा का उल्लंघन ना हो जाए किंतु गोगा जी को यह भली भांति ज्ञात हो गया था कि माता उनका मुख देख चुकी है इतने में काछ भी वहां आ पहुंची और माता बाछल से कहा अगर गोगा को तुम नहीं मना सकते तो मुझे आज्ञा दो जो जा चुके हैं वह वैसे भी कभी लौट कर नहीं आनेवाले अब क्यों वंश नाश करने पर उतारू है इतना सुनते ही गोगा जी ने घोड़े को एड लगाई और नीला हवा से बातें करने लगा माता बाछल और काछ दोनों पीछे से आवाजें देती रही उन्होंने गोगा जी के पीछे घुड़सवार भी दौड़ाई किंतु नीले की रफ्तार के आगे घुड़सवार हाथ मलते रह गए हृदय पर पर्वत के समान भारी बोझ लिए गोगा जी गुरु चरणों में आ पड़े और कहा गुरुवर मैं अपनी माता की आज्ञा पालन करने में असमर्थ रहा अब मेरा जीवन मरण सब एक समान है तभी गुरु गोरखनाथ ने गोगा जी से कहा पुत्र गोगा वर भूलोक पर अभी तुम्हारा कार्य संपन्न नहीं हुआ औरतुम्हारी आत्मा में जिस गगल में छिपाकर लाया था वो कोई साधारण ग नहीं अपितु वह ग देवताओं द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुआ था ग के अंश से उत्पन्न होने के कारण तुम अजर अमर हो गोगा जी ने गुरु गोरखनाथ को प्रणाम करते हुए कहा कि गुरुदेव आप आदेश करें आपकी क्या आज्ञा है गुरु गोरखनाथ ने कहा तुम्हें इस कलयुग के समय में दीन दुखियों की अरदास सुन उनका सहारा बनना होगा अतः तुम उत्तर की तरफ जाओ और जहां सूर्य अस्त हो जाए वहीं धरती माता की गोद में स्थान ग्रहण करो गोगा जी ने गुरु चरणों में प्रणाम किया और नीले परसवार हो उत्तर की तरफ निकल पड़े पहले ही बहुत समय बीत चुका था संध्या होते-होते गोगा जी ददरेवा से लगभग 92 किमी दूर आ पहुंचे और गोगा जी ने रेतीले टीलों की ओट में छिपे सूर्यदेव को प्रणाम किया दिन ढल चुका था गोगा जी ने धरती माता से आग्रह किया कि मुझे अपनी गोद में स्थान दें तभी अचानक धरती फटी और गोगा जी नीले घोड़े सहित मां की गोद में हमेशा हमेशा के लिए समाहित हो गए लेकिन लेकिन अभी भी जमीन से आधा बाहर निकला भाला और भाले पर लहराता ध्वज इस बात का प्रमाण दे रहा था कि गोगा जी इस स्थान पर समाधि ले चुके हैं श्रीगोगा महापुराण के अनुसार जब गोगा जी के समाधि लेने का पता दोनों राणि को चला तो माता काछ और बाछल सहित दोनों राणि ने गोगा जी के समाधि स्थल पर जाकर गोगा जी को पुकार लगाई कि वे उन्हें भी अपने साथ ले चले और देखते ही देखते पूरा परिवार धरती माता की गोद में समा गया जब उमर पाल सिंह ने अपनों को खुद से दूर जाते देखा तो उन्होंने भी ऐसा करना चाहा लेकिन तभी गुरु गोरखनाथ ने उन्हें रोका और कहा एक राजा का धर्म और कर्तव्य अपनी आखिरी सांस तक अपनी प्रजा की सेवा करना है अतः आप अपनी जिम्मेदारियां संभाले कोई कहीं नहीं गयाकेवल अपना भौतिक शरीर त्यागा है सच्चे मन से देखें सभी आपके साथ कण कण में विराजमान है धरती माता की गोद में समाहित होने के कुछ समय पश्चात लोगों द्वारा गोगा जी को बार-बार देखे जाने के दावे किए जाने लगे कोई कहता उन्हें हरिद्वार के पास कजली वन में टहलते देखा तो कोई कहता उन्हें गोरख टीले पर तपस्या करते देखा है ददरेवा के किसान भी कभी-कभी गोगा जी की झलक दिखने का दावा करते किसी को विश्वास होता तो कोई अफवाह कहकर अनसुना कर देता समय का चक्र चलता गया और कई सदियां बीत गई धीरे-धीरे लोगों द्वारा गोगा जी को भुला दिया गयाआने वाली नई पीढ़ियों ने गोगा जी के बारे में कहीं कोई जिक्र तक भी नहीं सुना हुआ था बस कुछ चुनिंदा स्थानीय बुजुर्गों को गोगा जी के बारे में ज्ञात था वह भी सिर्फ इसलिए कि वे पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बुजुर्गों से गोगा जी के बारे में सुनते आ रहे थे लेकिन उनके लिए यह एक दंत कथा यानी कहानी से बढ़कर कुछ ना था और फिर वह अविश्वसनीय घटना घटी जिस जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी जहां गोगा जी महाराज ने समाधि ली उसी स्थान के आसपास एक रामा नाम का रायका गाय चराता था आपको बता दें कि रायका एक अति प्राचीन वर्ग हैरायका समुदाय के लोग मुख्य रूप से पशुपालन और खेतीबाड़ी से जुड़े हुए हैं रामा के पास बहुत सारी गाय थी लेकिन रामा कुछ दिनों से देख रहा था कि उनमें से एक गाय ने अचानक दूध देना बंद कर दिया है इस गाय का नाम सूर्य था रामा जब गाय चराने जाता तो देखता सूरे गौओं के झुंड में कहीं नजर ही नहीं आती और शाम को जब ल टने का समय होता तो सुर्य आकर गायों के झुंड में मिल जाती इसी प्रकार कई दिन बीत गए माजरा क्या है पता लगाने के लिए रामा ने गाय पर नजर रखी रोजाना की तरह जब गाय अपने झुंड से अलग होकर जाने लगी तो रामा भी गाय केपीछे-पीछे चल पड़ा गांव के एक बुजुर्ग ग्वाले लखी ने देखा कि वह गाय घोरखपुर ही दौड़ा चला आ रहा है लखी ने रामा से पूछा क्या हुआ आखिर इतने घबराए हुए क्यों प्रतीत हो रहे हो तब रामा हांफ हुए बोला गाय का पीछा करने के दौरान मैंने देखा वह गाय गोरख टीले पर जाकर एक स्थान पर रुक गई और फिर अचानक धरती फटी और धरती से कोई बाहर निकल कर आया गाय के थन से अपने आप दूध की धारा निकलने लगी और जमीन से निकला व शख्स दूध पी रहा था लखी को रामा की बात पर विश्वास ना हुआ और अगले दिन रामा लखी सहित कुछ अन्य गांव के बड़े बुजुर्गों को अपने साथ ले आया और सभी पेड़की ओट में छिपकर यह अद्भुत दृश्य देखने लगे गाय नियमित रूप से उसी स्थान पर जा रुकी और फिर देखते ही देखते धरती फटी और गोगा जी बाहर आए और गौ माता ने गोगा जी को दूध पिलाया यह देख सभी हक्के बक्के रह गए सभी को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था बड़े बुजुर्गों को यह समझते बिल्कुल भी समय ना लगा कि यह और कोई नहीं साक्षात हमारे जाहरवीर गोगा जी महाराज है सभी लोगों ने गोगा जी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और मन ही मन क्षमा मांगी जिसके बाद वहां एक मंदिर निर्माण करवाया गया राजस्थान के चूरू जिले के ददरेवा मंदिर सेलगभग 92 किमी दूरी पर स्थित यह मंदिर हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में स्थित है आपको बता दें कि गोगा जी के इस मंदिर में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों द्वारा पूजा की जाती है गोगा जी के जन्म स्थान दत्त खेड़ा यानी ददरेवा में स्थित मंदिर को शीर्ष मेड़ी तथा गोगा जी के समाधि स्थल गोगामेड़ी में स्थित मंदिर को [संगीत] धुरमुस भ्रांतियां फैलाई गई है और शीर्ष मेड़ी को शीष मेड़ी बोलकर सर कटने जैसी अफवाहें बनाई गई हैं यहां शीर्ष का अर्थ सर्वोच्च तथा शुरुआत से है ुर का अर्थ धूल मिट्टी अथवा किसी स्थान के अंतिम शोर सेहै और गोगा जी के मंदिर को मेड़ी बोला जाता है अतः गोगा जी के जन्म स्थान को शीर्ष मेड़ी तथा समाधि स्थल को धुर मेड़ कहा गया है आखिर क्यों करते हैं मुस्लिम गोगा जी चौहान की पूजा जी हां केवल हिंदू मुस्लिम ही नहीं अपितु सिख ईसाइयों के लिए भी गोगामेड़ी समान रूप से श्रद्धा का केंद्र है गोगामेड़ी में जाहरवीर गोगा जी महाराज की पूजा करने वाले पुजारी चायल मुसलमान गोगा जी के ही वंशज है जो कि चौहानों की चायल शाखा से है यह कायम खानी मुस्लिम के कहलाते हैं लेकिन आखिर यह हुआ कैसे वही भाट द्वारा प्रमाणित गोगा जी कीवंशावली कुछ इस प्रकार है गोगा जी राव बैरस राव उदयराज जी राव हरराज जी राव विजयराज जी राव पिथो जी राव लालो जी राव गोपाल दास राव जैत स राव रूपाल जी राव तहत पाल जी राव मोटे राय जी राव मोटे राय जी के पांच पुत्र थे कायम सिंह जबरदेस्टी कर दिया था कर्मचंद यानी कायम सिंह के वंशज ही कायमखानी मुस्लिम कहलाते हैं लेकिन कायमखानी मुस्लिम के अलावा बाकी मुस्लिम भी गोगा जी की पूजा करते हैं लेकिन क्यों इसका पहला कारण गोगा जी को एक ही समय पर अलग-अलग जगह युद्ध करता देख महमूद गजनवी ने उन्हें जाहिर पीर की उपाधि दी गोगा जी के धरती माता की गोद मेंसमाहित होने के पश्चात जब वहां एक छोटा मंदिर बना दिया गया उसके कुछ समय बाद फिरोज शाह तुगलक हिसार होते हुए सिंध प्रदेश को विजय करने निकला रात्रि के समय विश्राम के लिए तुगलक सेना सहित गोगामेड़ी में ठहरा बादशाह तुगलक और उसकी सेना ने देखा कि हाथ में मशाल लिए घोड़े पर सवार एक योद्धा विशाल सेना के साथ आ रहा है तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया घबराए तुगलक को स्थानीय धार्मिक विद्वानों ने गोगा जी के बारे में बताया जिसके बाद फिरोज शाह ने युद्ध से लौटते समय गोगामेडी में मस्जिद नुमा मंदिर का निर्माण करवाया और उनके लोगों के लिए भी यह आस्था काकेंद्र बन गया तत्पश्चात मंदिर का जीर्णोद्धार बीकानेर के महाराज गंगासिंह के शासन काल में 1887x खांजाद में से ज्यादातर विभाजन के बाद पाकिस्तान में सिंध के दक्षिणी हिस्से में चले गए आपको जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान का शायद ही कोई ऐसा गांव या शहर होगा जहां गोगामेड़ी अर्थात गोगा जी का मंदिर ना हो राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भावना के प्रतीक गोगा जी राजस्थान के लोक देवता हैं लेकिन गोगा जी की पूजा संपूर्ण राजस्थान सहित हिमाचल प्रदेश हरियाणा उत्तराखंड पंजाब क्षेत्र उत्तर प्रदेश जम्मू और गुजरात में भी की जाती हैलोक मान्यताओं के अनुसार गोगा जी ने पहला पर्चा खिराज भक्त को दिया था इसके अलावा गोगा जी के चमत्कारों के अनेकों किस्से कहानियां मशहूर है ।
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