नीलकंठ और जादुई पेड़

बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था जिसका नाम नीलकंठ था। वह बहुत चतुर और जिज्ञासु था। उसे हर नई चीज़ के बारे में जानने का शौक था। गाँव के पास एक घना जंगल था, जिसमें लोग जाने से डरते थे।  एक दिन नीलकंठ ने अपनी दादी से पूछा, “दादी, जंगल में क्या है? लोग वहाँ जाने से क्यों डरते हैं?”  दादी ने कहा, “बेटा, वहाँ एक जादुई पेड़ है, जो अच्छे लोगों को इनाम देता है और बुरे लोगों को सज़ा। लेकिन वह पेड़ कहाँ है, यह किसी को नहीं पता।”  नीलकंठ ने तय किया कि वह जादुई पेड़ को ढूंढेगा। अगले दिन वह अपने कंधे पर एक छोटी सी पोटली लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। चलते-चलते वह पक्षियों की आवाज़ सुनता, रंग-बिरंगे फूल देखता और बहते पानी की धारा के पास रुका।  




कुछ देर बाद, उसने देखा कि एक खरगोश काँटों में फंसा हुआ है। नीलकंठ ने अपनी चतुराई से काँटों को हटाया और खरगोश को आज़ाद किया। खरगोश ने मुस्कराते हुए कहा, “तुम बहुत अच्छे हो, नीलकंठ। मैं तुम्हारी मदद करूँगा।”  


आगे बढ़ते हुए, नीलकंठ को एक बूढ़ा आदमी मिला। वह बहुत थका हुआ लग रहा था। नीलकंठ ने अपनी पोटली से खाना निकाला और उसे दे दिया। बूढ़े आदमी ने आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम्हारे दिल में बहुत दया है, बेटा। तुम्हें ज़रूर इनाम मिलेगा।”  


थोड़ी दूर चलने के बाद नीलकंठ को एक बड़ा, चमचमाता पेड़ दिखाई दिया। उसकी पत्तियाँ सोने जैसी चमक रही थीं और शाखाओं से रेशमी धागे लटक रहे थे। नीलकंठ ने पेड़ के पास जाकर कहा, “क्या आप ही जादुई पेड़ हैं?”  


पेड़ ने मुस्कराते हुए कहा, “हाँ, नीलकंठ। तुमने अपनी दया और चतुराई से साबित कर दिया कि तुम एक अच्छे इंसान हो। मैं तुम्हें इनाम दूँगा। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?”  


नीलकंठ ने कहा, “मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। बस इतना चाहूँगा कि हमारा गाँव हमेशा खुशहाल और सुखी रहे।”  


जादुई पेड़ ने अपनी शाखाएँ फैलाईं, और गाँव में ढेर सारी खुशहाली और फसलें आ गईं। गाँववाले नीलकंठ की तारीफ करते नहीं थके।  

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