पुरुषस्य अस्तित्वम् (पुरूष का अस्तित्व)

स्वलिखित संस्कृत रचना हिन्दी अनुवाद सहित 

पुरुषस्य अस्तित्वम् 

यदि स्त्रियाः जीवनं कष्टैः पूर्णं भवति तर्हि पुरुषस्य 

जीवनं न कठिनं जीवनस्य प्रत्येकस्य मार्गस्य 

लिटमसपरीक्षा परीक्षां विना जीवनस्य प्रत्येकस्मिन् 

चरणे इच्छानां वास्तविकता न सम्भवति स्पर्धा।

उभयोः स्वकीया अस्ति पुरुषः, सः किमपि दुःखं 

वा दुःखं वा न अनुभवति, कदाचित् धोखाधड़ीं, 

कदाचित् तिरस्कृतं, कदाचित् निरर्थकं च जगत् 

वदति यत् यः स्वपरिवारस्य सुखस्य प्रत्येकं इञ्चं 

कृते म्रियते, सः वस्तुतः तस्य व्यक्तित्वं कोऽपि 

परिचिनुवितुं न शक्नोति, सर्वेषां कृते एव अस्ति

 एकं वाक्यं तेषां जिह्वायां, तस्य महत्त्वं नास्ति, 

केवलं एकः प्रश्नः अस्य जगतः, पुरुषस्य कृते 

अपमानः कियत् न्याय्यः? मा तावमानं मानुषः 

न तु मृत्तिकाप्रतिमा।

हिन्दी अनुवाद 

पुरूष का अस्तित्व 

एक नारी का जीवन कठिनाई से भरा है तो

एक पुरुष का जीवन कौन सा कठिन नहीं जीवन 

के हर पथ की अग्निपरीक्षा भेदभाव 

कोई करती नहीं, बिना इम्तिहान दिये जीवन के 

हर दौर में ख़्वाहिशों का हकीकत होना मुमकिन

 नहीं, कोई प्रतियोगिता नहीं होती दोनों ही अपने 

फ़र्जदार हैं, कहती क्यों है फिर ये दुनिया एक पुरुष 

को दर्द ए ग़म होता नहीं, वो भी जीता है घुट घुट के

 उसका घुटना किसी को दिखता नहीं, दुनिया कहती हैं

 पुरूष है इसको दर्द ए ग़म होता नहीं, कभी फ़रेबी 

कभी नकारा कभी निकम्मा कहती है दुनिया जिसको 

जो तिल तिल अपने परिवार की हर खुशी की ख़ातिर 

है मरता असल में उसकी शख्सियत कोई पहचान 

पाता नहीं, बस जुबां पर सबकी एक ही जुमला 

होता पुरुष है इसको कोई फर्क पड़ता नहीं, इस 

दुनिया से बस एक ही सवाल एक पुरुष का अपमान 

कितना सही..? न करो इतना भी अपमान उसका 

इंसान है वो भी कोई माटी का पुतला नहीं,

तरुणा शर्मा तरु 

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