मने आज एक लड़की को कसे चोदा,....,.....? आज रात की बात थी मेरी एक पड़ोस मे लड़की रह ती थी वो मुझे call कर के घर बुलाया सेक्स कर ने के लिए और म रात के करीब 1 बजे उस के पास पहुँचा मेरे लण्ड मे से पानी निकल रहा था फिर मने उस लड़की को उस के ममी के कमरे मे ले गया और उस की चुत को चाट चाट कर उस का सारा पानी पी गया और उस को बहुत चौदा

उन दिनों मैं बी.ए. फाइनल इयर में थी। मम्मी, पापा को छोड़कर वेदांत अंकल के साथ ही रहने लगी थी। महीने-दो-महीने में वह इधर का एक चक्कर लगाती और मुझसे मिलकर चली जाती। जहां तक मैं जानती थी, मम्मी-पापा में अलगाव का कारण सेक्स ही था।

पापा से रवीना उम्र में बहुत ही छोटी थी। वह शादी कर किसी दूसरे शहर में चली गई थी। पापा को इस मामले में करारी मात मिली थी। इस दौरान मुझे जो भी युवक अच्छा लगा था, मैंने उसे छोड़ा नहीं था। अब तक मैं सैकड़ों पुरुषों से यौन-संबंध बना चुकी थी, लेकिन उस युवक और देवगन को मैं आज तक भुला नहीं पाई थी। मेरे मन-मंदिर में आज भी उनकी धुंधली तस्वीरें थी, लेकिन मैं अतीत को लेकर जीने वालों में से नहीं थी। मुझे तो हर शाम एक नया स्वाद चाहिए था।

इस नए स्वाद का चस्का ही शायद मुझे पुरुष-दर-पुरुष भटकाता रहा। न मालूम मुझमें ऐसी क्या खूबी थी, कि जिस भी पुरुष पर वह नजरें टिका देती, वह मुझे पाने के लिए मचल उठता था। यौन-क्रीड़ा से भी अधिक आनंद छूने छाने या सहलाने से मुझे मिलता। इसकी वजह मेरे पूर्व आशिकों का इस कला में निपुण होना ही था।

स्पर्श, फिर चुंबन, इसके बाद यौनानंद…. मेरे जीवन का एक मात्र ध्येय बन गया था। अब तक मेरे जीवन में कुछ ऐसे पुरुष भी आ चुके थे, जो बड़े उद्योगपति या देश के शीर्षस्थ नेता थे, लेकिन मैंने उनके नाम को भुनाया नहीं था, क्योंकि मैंने कभी इस दृष्टि से किसी पुरुष से संबंध बनाए ही नहीं थे। इसे कोई मेरी जिंदगी की भूल समझे या उसल। मेरी उम्र भी तो पैसे को महत्व देने वाली नहीं थी। खाने-पीने या घूमने-फिरने में जो पुरुष मेरे साथ होता, वह खर्च करता ही था। मैं उसको निचोड़ना अच्छी बात नहीं समझती थी।

समय यूं ही धीरे-धीरे बीतता रहा।

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