पर्यावरण मंत्रालय ने कोयला संयंत्रों को बड़ी राहत दी—78% संयंत्र सूची से बाहर
013 Jul 2025
🌿 **पर्यावरण मंत्रालय ने कोयला संयंत्रों को बड़ी राहत दी—78% संयंत्र सूची से बाहर
📰 ट्रेंडिंग हेडलाइन:
**“मंत्रालय ने 78% कोयला संयंत्रों को प्रदूषण-रोधी प्रणालियों से छूट दी, ज़िम्मेदार संयंत्र बड़े शहरों से दूर रहेंगे”**
🗓️ नवीनतम अपडेट (जुलाई 2025)
पर्यावरण मंत्रालय की राजपत्र अधिसूचना (11 जुलाई 2025) के अनुसार, कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को अब फ़्लू-गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (FGD) प्रणालियाँ लगाने की आवश्यकता नहीं है—उनके अधिकांश संयंत्र अब इससे मुक्त हैं।
विवरण:
* **श्रेणी C:**
दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों या अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों से 10 किमी या उससे अधिक की दूरी पर स्थित संयंत्रों को SO₂ नियंत्रण प्रणालियाँ लगाने से **पूरी तरह छूट** दी गई है।
* **श्रेणी बी:**
शहरों के पास स्थित लेकिन सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में स्थित संयंत्रों को **मामला-दर-मामला** आधार पर नियमों का पालन करना होगा।
* **श्रेणी ए:**
दिल्ली और दस लाख से अधिक आबादी वाले प्रमुख शहरों में स्थित 10% संयंत्रों को दिसंबर 2027 तक एफजीडी सिस्टम स्थापित करने होंगे।
🌀 सरकार के तर्क और आधार:
1. **कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि:**
सीपीसीबी ने पाया कि एफजीडी सिस्टम के संचालन के बावजूद CO₂ उत्सर्जन बढ़ सकता है ([रॉयटर्स][1])।
2. **तकनीकी-आर्थिक बाधाएँ:**
कई संयंत्रों ने कहा कि एफजीडी तकनीक उपलब्ध नहीं है, महंगी है, और इससे बिजली दरों पर दबाव पड़ेगा ([एनडीटीवी प्रॉफिट][2], [रॉयटर्स][1])।
3. **एनआईएएस अध्ययन:
रिपोर्ट में कहा गया है कि चूँकि अधिकांश कोयले में सल्फर की मात्रा कम होती है, इसलिए सभी संयंत्रों में एफजीडी आवश्यक नहीं है; इसके बजाय, पीएम नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर होगा ([टेलीग्राफ इंडिया][3])।
4. विद्युत मंत्रालय की सिफ़ारिश:
मंत्रालय ने इस नीतिगत ढील का स्पष्ट रूप से समर्थन किया।
🔍 इसके क्या लाभ और हानियाँ हैं?
| 👍 **लाभ** | 👎 **चिंताएँ** |
| --------------------------------------- | ---------------------------------------- |
| लागत में कमी | SO₂ उत्सर्जन में वृद्धि की आशंका |
| बिजली की कीमतों में स्थिरता | जन स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव |
| अन्य प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों को बढ़ावा | कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता बनी रहेगी |
✍️ निष्कर्ष:
मंत्रालय का नया निर्णय कोयला संयंत्रों को सफाई संबंधी चुनौतियों से बचा रहा है—लेकिन सवाल यह है कि क्या यह निष्क्रियता वायुमंडलीय प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट का कारण बन रही है?
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