गलवान के बाद पहली बार चीन जाएंगे पीएम मोदी: SCO समिट में ऐतिहासिक भागीदारी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गलवान झड़प के बाद पहली बार चीन का दौरा करेंगे। SCO समिट में शामिल होने को लेकर चीन ने कहा- मोदी जी का स्वागत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अंतरराष्ट्रीय समाचार, चीन, SCO समिट, गलवान घाटी

 

बीजिंग/नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच कूटनीतिक रिश्तों में एक अहम मोड़ आने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन जाएंगे। खास बात यह है कि यह उनका चीन दौरा गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद का पहला आधिकारिक दौरा होगा। चीन सरकार की ओर से इस यात्रा को लेकर सकारात्मक संकेत दिए गए हैं और आधिकारिक बयान में कहा गया है—"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत है।"


 गलवान झड़प के बाद पहली मुलाकात की तैयारी


जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें दोनों पक्षों को नुकसान उठाना पड़ा। इसके बाद से भारत-चीन संबंधों में तनाव बना हुआ था। पिछले कुछ वर्षों में कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हुईं, लेकिन शीर्ष स्तर पर दोनों देशों के नेताओं की आमने-सामने मुलाकात नहीं हो पाई थी।

इस बार SCO समिट के बहाने प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात की संभावना है, जो दोनों देशों के रिश्तों में नया अध्याय खोल सकती है।


 SCO समिट का महत्व


SCO यानी शंघाई सहयोग संगठन, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसमें चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। इस संगठन का उद्देश्य सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है।

इस साल का सम्मेलन बीजिंग में आयोजित होगा और इसमें सदस्य देशों के प्रमुख नेता शामिल होंगे। भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण मंच है, क्योंकि यह न सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा का अवसर देगा, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और सामरिक सहयोग बढ़ाने का भी मौका है।


 चीन का स्वागत संदेश


चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मीडिया से बातचीत में कहा,


 “हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन में स्वागत करते हैं। भारत और चीन, दोनों को एक-दूसरे के साथ संवाद बढ़ाना चाहिए और आपसी विश्वास को मजबूत करना चाहिए।”

 यह बयान ऐसे समय में आया है जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर संवेदनशील माहौल है।


 भारत के लिए संभावित एजेंडा


विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी इस यात्रा में तीन प्रमुख मुद्दों पर जोर दे सकते हैं—


1. सीमा पर तनाव कम करना – वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैनिकों की तैनाती में कमी और गश्त के नियमों को लेकर नई समझौते की संभावना।

2. व्यापार संतुलन – भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए ठोस कदम।

3. आतंरिक और क्षेत्रीय सुरक्षा – आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और ऊर्जा सहयोग जैसे मुद्दों पर समझौता।


 गलवान के बाद बदला माहौल


गलवान झड़प के बाद भारत ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे—चीन के मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध, कुछ चीनी कंपनियों के निवेश पर रोक और बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट्स में स्वदेशी विकल्पों को बढ़ावा। हालांकि, व्यापारिक आंकड़ों के अनुसार, दोनों देशों के बीच आर्थिक लेन-देन पूरी तरह बंद नहीं हुआ और चीन अब भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदारों में से एक है।

इस दौरे से यह संकेत मिल सकता है कि दोनों देश संवाद और आर्थिक सहयोग के जरिए तनाव कम करना चाहते हैं।


 SCO में भारत की भूमिका


भारत 2017 में SCO का पूर्ण सदस्य बना था। तब से भारत ने इस मंच का उपयोग आतंकवाद, कनेक्टिविटी और ऊर्जा सहयोग जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखने के लिए किया है। इस साल का सम्मेलन भारत के लिए और भी अहम है, क्योंकि यह एशिया में बदलते सामरिक समीकरणों के बीच हो रहा है।


 विशेषज्ञों की राय


अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ डॉ. अरुण शर्मा का मानना है,


 “अगर यह मुलाकात सकारात्मक माहौल में होती है, तो यह न सिर्फ भारत-चीन संबंधों में सुधार ला सकती है बल्कि पूरे एशिया में स्थिरता के लिए संकेत दे सकती है।”

 हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि सीमा विवाद के समाधान के बिना दीर्घकालिक भरोसा बनना मुश्किल होगा।


 जनता और राजनीतिक प्रतिक्रिया


भारत में इस खबर को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। कुछ लोग इसे रिश्तों में सुधार का मौका मान रहे हैं, तो कुछ इसे एक कठिन कूटनीतिक परीक्षा कह रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इस विषय पर बहस तेज हो गई है।


 निष्कर्ष


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह चीन दौरा कूटनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यह न सिर्फ भारत और चीन के बीच संवाद का नया अध्याय खोल सकता है, बल्कि एशिया में शांति और स्थिरता के प्रयासों को भी मजबूत कर सकता है। हालांकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों देश कितनी ईमानदारी से सीमा विवाद और अन्य मुद्दों पर समाधान खोजने की कोशिश करते हैं।

0 likes

Top related questions

Related queries

Latest questions